टोंक के देवली स्थित बीसलपुर गांव में खूबसूरत वादियों के बीच बना बीसलपुर बांध जयपुर समेत चार जिलों की लाइफलाइन कहलाता है। बनास नदी पर बना बीसलपुर बांध 7 बार ओवरफ्लो हो चुका है। इस साल भी बीसलपुर से खुशियां बह रही हैं।
बीसलपुर बनास नदी पर बना उम्मीदों का बांध है
बीसलपुर बांध पहाड़ों की खूबसूरती से घिरा हुआ है। यह बांध 1 करोड़ 10 लाख से ज्यादा लोगों की प्यास बुझाता है। बीसलपुर बांध की आधारशिला 1985 में तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर और सिंचाई मंत्री परसराम मदेरणा ने रखी थी। जिसका निर्माण कार्य 1987 में शुरू हुआ था। बांध का निर्माण एक ही चरण में किया गया है, जो 1996 में पूरा हुआ था। बांध निर्माण की कुल लागत 825 करोड़ रुपए थी।
38.7 टीएमसी भराव क्षमता-
बीसलपुर बांध की ऊंचाई 315.50 आरएल मीटर है, जिसकी भराव क्षमता 38.7 टीएमसी है। जलदाय विभाग को आमजन की प्यास बुझाने के लिए 16.20 टीएमसी पानी मिलता है। इसके अलावा 8 टीएमसी पानी किसानों को 80 हेक्टेयर सिंचाई के लिए दिया जाता है। बाकी पानी वाष्पित हो जाता है। बीसलपुर से सबसे ज्यादा पानी की आपूर्ति 535 एमएलडी जयपुर को होती है, इसके बाद अजमेर, टोंक-उनियारा को सप्लाई की जा रही है। बीसलपुर बांध से रोजाना करीब 1000 एमएलडी पानी सप्लाई होता है।
और बन गया जयपुर की लाइफलाइन-
बीसलपुर बांध अजमेर की प्यास बुझाने के लिए बनाया गया था, लेकिन उस समय जयपुर की लाइफलाइन कहलाने वाला रामगढ़ बांध सूख गया। इसके बाद जयपुर के लिए यह प्रोजेक्ट तैयार किया गया। टोंक और दौसा को पानी की आपूर्ति होने लगी।
बीसलपुर बांध का लेखा-जोखा
अब आपको बताते हैं कि बीसलपुर बांध का लेखा-जोखा क्या है, बांध में कितना पानी आ रहा है और बांध के गेट कब-कब खोले गए। आखिर बीसलपुर मांग के मुताबिक पानी दे पा रहा है या नहीं?
बांध में पानी की आवक का मुख्य स्रोत त्रिवेणी नदी है-
बांध में पानी की आवक का मुख्य स्रोत त्रिवेणी नदी को माना जाता है। इसके साथ ही बनास में पानी की आवक मेनाल झरने से गोवटा बांध तक होती है। गोवटा बांध के ओवरफ्लो होने के बाद पानी मेनाली नदी से मिलकर त्रिवेणी तक पहुंचता है। बनास, खारी, दाई नदी मिलकर त्रिवेणी का संगम बनाती हैं। राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा को बीसलपुर का जलग्रहण क्षेत्र माना जाता है। यहां से टोंक में बने बीसलपुर बांध में पानी आ पाता है।
आस्था का केंद्र हैं बीसलदेव-
बीसलपुर बांध में बना बीसलदेव का मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। इस मंदिर का धार्मिक और सामाजिक महत्व बहुत गहरा है। इस मंदिर का नाम बीसलदेव है। जिसका अर्थ है भगवान महान और सर्वश्रेष्ठ। इस मंदिर को देश के पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय महत्व का स्मारक भी माना गया है। इसे 12वीं शताब्दी में चौहानों के शासक विग्रहराज ने प्रमाणित किया था, जिन्हें बीसलदेव के नाम से जाना गया। जब भी बीसलपुर बांध भर जाता है, तो यह मंदिर भी बांध के पानी में डूब जाता है।
भगवान शिव ने रावण को दिए थे दर्शन
बीसलपुर बांध के पास स्थित गोकर्णेश्वर मंदिर में भी लोगों की गहरी आस्था है। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार मंदिर में स्थित शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना भगवान शिव के परम भक्त दशानन ने की थी। रावण ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी और वहां कई बार भगवान शिव की पूजा की थी और भगवान शिव को प्रसन्न किया था। भगवान शिव रावण के सामने प्रकट हुए थे और रावण ने भगवान शिव से वरदान मांगा था। जब रावण ने भगवान शिव से वरदान मांगा था, तो भगवान शिव ने उसे वरदान दिया था। इसीलिए वहां गोकर्णेश्वर मंदिर बनाया गया।
स्काडा सिस्टम से लैस-
आस्था के साथ-साथ बीसलपुर बांध के 'स्काडा' सिस्टम की भी चर्चा है। बीसलपुर बांध राजस्थान का पहला ऐसा बांध है जो स्काडा सिस्टम से लैस है। स्काडा सिस्टम का मतलब है कि इस बांध की मॉनिटरिंग पूरी तरह से ऑनलाइन होती है। जिसमें जल संसाधन विभाग के इंजीनियरों द्वारा मॉनिटरिंग के लिए कैमरे और कई तरह के उपकरण लगाए गए हैं। अब बांध के गेट खोलने के लिए सिर्फ एक बटन दबाना होता है। साथ ही बांध से कितना पानी छोड़ा जाना है, यह भी पूरी तरह से ऑनलाइन सिस्टम के जरिए होता है। बांध में कितना पानी है, इसकी पल-पल की अपडेट स्काडा सिस्टम से जल संसाधन विभाग को मिलती रहती है।
कैसे होता है बीसलपुर बांध का पानी शुद्ध?
बीसलपुर बांध के पास जलदाय विभाग का पंप हाउस बना हुआ है। जहां 1200 वॉट की 9 बड़ी मोटरें लगी हुई हैं। यहां से यह पानी पाइप लाइन के जरिए 8 किलोमीटर की दूरी पर सूरजपुरा ट्रीटेड प्लांट तक पहुंचता है।सूरजपुरा ट्रीटेड प्लांट 24 घंटे पानी को शुद्ध करने का काम करता है, ताकि जयपुर और आसपास के इलाकों की 50 लाख आबादी की प्यास बुझाई जा सके। बीसलपुर बांध का पानी पाइप लाइन के जरिए सूरजपुरा से वाटर ट्रीटेड प्लांट तक पहुंचता है।इसके बाद पानी को ट्रीट करने का काम शुरू किया जाता है।
पानी के आमजन तक पहुंचने से पहले सूरजपुरा में बनी प्रयोगशाला में इसकी जांच की जाती है। हर घंटे पानी की शुद्धता के हर पैमाने पर रिपोर्ट ली जाती है। जिसमें तीन तरह के पानी की जांच की जाती है। एक तो बीसलपुर से सीधा आने वाला पानी, दूसरा वो पानी जो आमजन तक जाएगा, दूसरा वो गंदा पानी जो ट्रीटेड प्लांट से निकाला गया है।पानी के शुद्धता के लिए लैब टेस्ट में पास होने के बाद ही सूरजपुरा प्लांट से जयपुर के लिए पानी छोड़ा जाता है. इसलिए जयपुर तक पानी पहुंचाना इतना आसान नहीं है. इंजीनियर दिन-रात मेहनत करते हैं, तब जाकर ये पानी जयपुर, अजमेर, टोंक, दौसा तक पहुंचता है।
You may also like
कोरबा: रानी धनराज कुंवर अस्पताल में लगी आग,मरीजों को निकाला गया बाहर; कोई हताहत नहीं
नोरा फतेही: संघर्ष से सफलता तक का सफर
माइक्रोसॉफ्ट के बाद अब अमेजन में छंटनी, इस बार डिवाइस और सर्विस डिपार्टमेंट के 100 कर्मचारियों की गई नौकरी, क्या और कर्मचारियों पर लटकी है छंटनी की तलवार?
कर्नल सोफिया पर टिप्पणी मामला: एमपी हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे मंत्री विजय शाह, तत्काल सुनवाई की अपील
2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य में पूर्वोत्तर रीजन की होगी अहम भूमिका : केंद्रीय मंत्री