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Vijay Stambh : क्यों है यह स्मारक राजस्थान की आन-बान-शान, वीडियो में जानिए अंदर की नक्काशियों और ऐतिहासिक रहस्यों की कहानी

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राजस्थान अपने विशाल किलों, हवेलियों और वीरता की कहानियों के लिए जाना जाता है। इनमें से एक सबसे अनोखा और भव्य स्मारक है चित्तौड़गढ़ किले में स्थित विजय स्तंभ। यह स्मारक न केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण है बल्कि मेवाड़ की शौर्यगाथा और गौरवशाली परंपरा का प्रतीक भी माना जाता है। विजय स्तंभ की यात्रा आज भी पर्यटकों के लिए इतिहास से जुड़ने का अवसर देती है और इसके अंदर बनी नक्काशियां व शिल्पकला हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।

विजय स्तंभ का निर्माण और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

विजय स्तंभ का निर्माण 1442 से 1449 ईस्वी के बीच राणा कुंभा ने करवाया था। यह स्तंभ मेवाड़ के राजपूतों की शक्ति और साहस का प्रमाण है। राणा कुंभा ने इसे मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी पर अपनी जीत के उपलक्ष्य में बनवाया था। लगभग 37 मीटर ऊँचा और नौ मंजिला यह स्तंभ चित्तौड़गढ़ किले के भीतर स्थित है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से हजारों सैलानी आते हैं।यह स्मारक केवल युद्ध में जीत का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसमें हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां और उस समय की सामाजिक-सांस्कृतिक झलक भी दिखाई देती है। इस कारण इसे राजस्थान की आन-बान-शान का गौरव कहा जाता है।

स्थापत्य कला और शिल्पकला की बेजोड़ मिसाल

विजय स्तंभ की वास्तुकला इसे और भी खास बनाती है। पूरा स्तंभ बलुआ पत्थर से बनाया गया है और इसकी दीवारों पर बारीक नक्काशियां की गई हैं। नौ मंजिला इस इमारत तक सीढ़ियों से जाया जा सकता है। कुल 157 सीढ़ियां पार करके जब कोई व्यक्ति ऊपर पहुंचता है तो पूरा चित्तौड़गढ़ किला और आसपास का दृश्य साफ नजर आता है।हर मंजिल पर अलग-अलग आकृतियां, देवताओं की मूर्तियां और पौराणिक कथाओं की झलक देखने को मिलती है। विष्णु, शिव, दुर्गा और ब्रह्मा की मूर्तियों के साथ-साथ इसमें यक्ष, गंधर्व और अप्सराओं की कलात्मक आकृतियां भी अंकित हैं। विजय स्तंभ की दीवारों पर की गई इन नक्काशियों से तत्कालीन शिल्पकारों की अद्भुत प्रतिभा झलकती है।

विजय स्तंभ के रहस्य और कथाएं

इतिहासकार बताते हैं कि विजय स्तंभ केवल एक स्मारक नहीं था, बल्कि यह एक धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर भी था। कहा जाता है कि इसकी दीवारों पर अंकित चित्र उस समय के समाज, धर्म और परंपराओं का सजीव दस्तावेज हैं। एक रोचक तथ्य यह भी है कि स्तंभ के शीर्ष पर देवी दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई थी, जो इस बात का प्रतीक है कि मेवाड़ की जीत केवल शक्ति से नहीं बल्कि आस्था और धर्म से भी जुड़ी हुई थी।कई मान्यताओं के अनुसार विजय स्तंभ के निर्माण के दौरान गुप्त कक्ष और सुरंगें भी बनाई गई थीं, जिनका इस्तेमाल संकट के समय संदेश भेजने या शरण लेने के लिए किया जाता था। हालांकि आज इनमें से कई हिस्से बंद हो चुके हैं, लेकिन इन रहस्यों ने स्तंभ को और भी रहस्यमयी बना दिया है।

पर्यटन और सांस्कृतिक महत्व

आज विजय स्तंभ चित्तौड़गढ़ किले का सबसे बड़ा आकर्षण है। राजस्थान घूमने आने वाला हर पर्यटक इसे देखने जरूर जाता है। खासकर दीपावली और दशहरे के अवसर पर यहां विशेष आयोजन किए जाते हैं, जो इसकी ऐतिहासिक महत्ता को और बढ़ा देते हैं।भारत सरकार ने भी इस स्मारक को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया है। यह स्तंभ राजस्थान के गौरव, पराक्रम और स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण है। फिल्मकारों और डॉक्यूमेंट्री मेकर्स ने भी कई बार इसे अपने प्रोजेक्ट्स में शामिल किया है।

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