''यह पहली बार है कि अफ़ग़ानिस्तान की स्पष्ट सीमा निर्धारित की गई है, जिससे भविष्य में ग़लतफ़हमी पैदा नहीं होगी. इसके साथ ही अफ़ग़ानिस्तान ब्रिटिश हथियारों और गोला-बारूद की मदद से अधिक मज़बूत और ताक़तवर बनेगा.''
पाकिस्तान के वरिष्ठ पत्रकार और शोधकर्ता वक़ार मुस्तफ़ा के मुताबिक़ क़रीब 132 साल पहले 13 नवंबर 1893 को जब डूरंड रेखा को लेकर समझौता हुआ था, तब अफ़ग़ानिस्तान के अमीर अब्दुर रहमान ने ये बातें कही थीं.
वक़ार मुस्तफ़ा कहते हैं, "समझौते के वक़्त अमीर अब्दुर रहमान एक ऐसे विशाल इलाक़े पर अपनी संप्रभुता और अधिकार त्याग रहे थे, जो बहुत पहले ही अफ़ग़ानिस्तान के प्रभाव से दूर जा चुका था.''
यह इलाक़ा अब पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह और बलूचिस्तान प्रांतों का हिस्सा है.
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हाल ही में अफ़ग़ानिस्तान में सत्तारूढ़ तालिबान सरकार के रक्षा मंत्री मुल्ला याक़ूब के डूरंड रेखा को लेकर दिए गए एक विवादास्पद बयान ने इस मुद्दे को फिर से गरमा दिया है.
ऐसे में कई लोग इस मुद्दे पर चर्चा कर रहे हैं कि ये विवाद कब और कैसे शुरू हुआ? और क्या यह समझौता सौ साल के लिए हुआ था?
डूरंड रेखा अफ़ग़निस्तान और पाकिस्तान के बीच लगभग 2,600 किलोमीटर लंबी सीमा है जो 1893 में ब्रिटिश भारत और अफ़ग़ानिस्तान के बीच स्थापित की गई थी.
लेकिन अफ़ग़ानिस्तान की आपत्तियों की वजह से 1947 में पाकिस्तान के निर्माण के बाद से यह दोनों देशों के बीच संघर्ष की एक अहम वजह रही है.
'ग्रेट गेम' और डूरंड लाइन
डूरंड लाइन का नाम ब्रिटिश भारत के विदेश सचिव सर हेनरी मोर्टिमर डूरंड के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने अफ़ग़ानिस्तान के अमीर अब्दुर रहमान ख़ान के साथ एक एक समझौता किया था.
इस लाइन का पश्चिमी छोर ईरानी सीमा से मिलता है, जबकि पूर्वी छोर चीनी सीमा से.
'एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका' के मुताबिक़,19वीं सदी की शुरुआत में मध्य एशिया में प्रभुत्व के लिए ब्रिटिश और रूसी संघर्ष में अफ़ग़ानिस्तान एक मोहरा बन गया था. इतिहास में इस संघर्ष को 'ग्रेट गेम' के नाम से जाना जाता है.
रूस के दक्षिण की ओर बढ़ते क़दमों को रोकने के लिए, ब्रिटेन ने 1839 में अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया, जिसमें ब्रिटिश सेनाएं हार गईं.
1849 में अंग्रेज़ों ने पंजाब पर क़ब्ज़ा कर लिया. फिर उन्होंने सिंधु नदी के पश्चिम में अस्पष्ट सिख सीमा पर क़ब्ज़ा किया.
इस क्षेत्र में कई पश्तून जनजातियां रहती थीं. उनका प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था अंग्रेज़ों के लिए समस्याएं खड़ी कर रही थीं.
ब्रिटिश अधिकारी दो समूहों में बंटे हुए थे. स्थिर विचारधारा जो सिंधु नदी की ओर पीछे हटने के पक्ष में थी. और अग्रिम विचारधारा जो काबुल, ग़ज़नी और कंधार तक आगे बढ़ना चाहती थी.
ब्रिटानिका रिसर्च में कहा गया है, ''1878 के युद्ध में अंग्रेज़ों को सफलता मिली और अब्दुर रहमान ख़ान को नया अमीर नियुक्त किया गया. अब्दुर रहमान ने 1880 में गंडमक की संधि का अनुमोदन किया, जिसे उनके पूर्ववर्ती याकूब ख़ान ने 1879 में पूरा किया था."
"इस संधि के तहत अफ़ग़ानिस्तान की विदेश नीति ब्रिटिश नियंत्रण में आ गई. हालांकि ब्रिटेन ने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने की गारंटी दी और बाद में अपने सैनिकों को वापस बुला लिया."
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किसी ज़माने में 'डूरंड रेखा' को लेकर हुए समझौते को कई अफ़ग़ान शासकों ने मान्यता दी थी.
गुज़रते समय के साथ यह समझौता विवादास्पद हो गया और अफ़ग़ानिस्तान के शासकों ने पाकिस्तान के साथ सीमा के तौर पर इसे मान्यता देने से इनकार कर दिया.
ब्रिटिश सरकार ने तत्कालीन भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों पर अपना नियंत्रण मज़बूत करने के लिए सन 1893 में अफ़ग़ानिस्तान के साथ 2640 किलोमीटर लंबी सीमा पर समझौता किया था.
इसके एक ओर अफ़ग़ानिस्तान के 12 प्रांत हैं, और दूसरी ओर ख़ैबर पख़्तूनख़्वा, बलूचिस्तान और गिलगित-बाल्टिस्तान जैसे पाकिस्तानी क्षेत्र.
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पाकिस्तान और अफ़ग़ान तालिबान के बीच सीमावर्ती इलाक़ों में हालिया झड़पों के बाद डूरंड रेखा एक बार फिर से चर्चा में है.
बीते कुछ दिनों में हुए संघर्षों में दोनों पक्षों के कई लोगों की मौत हो चुकी है और कई घायल भी हुए हैं.
इस संघर्ष के बाद दोनों पक्षों के बीच दोहा में तत्काल शांति समझौते पर सहमति बन गई है लेकिन इसमें सीमा विवाद को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई.
दरअसल पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच एक लंबी खुली सीमा है और कई इलाक़ों में दोनों तरफ़ के लोग परंपरागत रूप से एक-दूसरे के काफ़ी क़रीब हैं.
दोनों की यह क़रीबी धार्मिक और सांस्कृतिक स्तर पर भी है. अफ़ग़ानिस्तान में हर सरकार का मानना है कि पाकिस्तान के साथ खींची गई डूरंड लाइन इसमें दख़ल देती है, इसलिए वह इसे मानने से इनकार करता है.
साउथ एशियन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर धनंजय त्रिपाठी के मुताबिक़, "यह एक खुली सीमा है और दोनों तरफ़ के लोगों का एक-दूसरे के यहां आना जाना लगा रहता है. उनके बीच धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर काफ़ी समानता है. अफ़ग़ानिस्तान के लिए ये एक संवेदनशील मामला है."
"अफ़ग़ानिस्तान में कोई भी शासन में आ जाए वो डूरंड लाइन को नहीं मानेंगे क्योंकि इससे उनका भावनात्मक और ऐतिहासिक संबंध है. डूरंड लाइन को तालिबान ने भी कभी नहीं माना है."
मिडिल ईस्ट इनसाइट्स प्लेटफ़ॉर्म की संस्थापक डॉक्टर शुभदा चौधरी कहती हैं, ''अफ़ग़ानिस्तान डूरंड रेखा को नहीं मानता है, इससे पाकिस्तान के पश्तून प्रभाव वाले इलाक़ों जैसे कि ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह और बलूचिस्तान के कुछ हिस्सों में डर बढ़ जाता है, जो पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का क़रीब 40 फ़ीसदी तक हो सकता है."
पाकिस्तान का यह डर और बढ़ जाता है क्योंकि अफ़ग़ानिस्तान ने ऐतिहासिक रूप से "पश्तूनिस्तान" (एक स्वतंत्र पश्तून राज्य) का समर्थन किया, जिसे पाकिस्तान अपनी एकता के लिए ख़तरा मानता है, ख़ासकर 1971 में बांग्लादेश के अलग होने के बाद.
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पाकिस्तान डूरंड रेखा को मान्यता देता है जिससे किसी भी अलगाव की प्रक्रिया को रोका जा सकता है, और उस पश्तून राष्ट्रवाद को दबाया जा सकता है जो पाकिस्तान के संघीय ढांचे को अस्थिर कर सकता है.
इस रेखा को ज़्यादातर देशों ने मान्यता दी है, जिसमें अमेरिका भी शामिल है. संयुक्त राष्ट्र के नक्शों पर इसे व्यावहारिक (डि फैक्टो) सीमा के रूप में दिखाया गया है.
शुभदा चौधरी के मुताबिक़, "पाकिस्तान इस स्थिति का उपयोग करके अफ़ग़ानिस्तान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग करता है."

शुभदा चौधरी कहती हैं, "1947 में पाकिस्तान के अस्तित्व में आने के बाद से अफ़ग़ानिस्तान ने लगातार डूरंड रेखा को अपने और पाकिस्तान के बीच की आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में अस्वीकार किया है. इसका कारण ऐतिहासिक शिकायतें हैं. यह एक ऐसी रेखा है जिसने जातीय पश्तून समुदायों को विभाजित कर दिया.''
शुभदा चौधरी के मुताबिक़, "कई अफ़ग़ान यह तर्क देते हैं कि डूरंड लाइन पर समझौता ब्रिटेन के दबाव में हुआ था, क्योंकि एंग्लो-अफ़ग़ान युद्धों के बाद अब्दुर रहमान के पास बहुत कम ताक़त बची थी. बाद की अफ़ग़ान सरकारों ने इसी दबाव का हवाला देते हुए डूरंड रेखा को अवैध घोषित किया."
अफ़ग़ानिस्तान ने शुरुआत में दबाव में आकर इसे स्वीकार किया था, लेकिन तब भी अफ़ग़ान नागरिकों ने इसे पश्तून भूमि का मनमाना विभाजन माना और इसका विरोध किया.
यह रेखा 1894 से 1896 के बीच चिह्नित की गई थी, लेकिन कई दुर्गम इलाक़ों में इसे अस्पष्ट छोड़ दिया गया था.
शुभदा चौधरी बताती हैं कि ख़ोस्त (अफ़ग़ानिस्तान) से पाकिस्तान की सुलेमान पर्वत श्रृंखला तक का कबीलाई इलाक़ा, ओरकज़ई का एक बड़ा हिस्सा, स्पिन बोल्डक से गज़नी तक कई इलाक़ों में सीमा साफ़ तौर पर तय न होने से दोनों पक्षों के बीच विवाद और तनाव लगातार बने रहते हैं.
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अफ़ग़ानिस्तान बीते कुछ समय के दौरान पाकिस्तान पर अपनी सीमा और हवाई क्षेत्र के उल्लंघन का आरोप लगाता रहा है. पाकिस्तान ने कुछ कार्रवाइयों की पुष्टि की है जबकि कुछ से इनकार किया है.
अफ़ग़ान तालिबान ने भी मौजूदा तनाव के बीच पाकिस्तानी सुरक्षा बलों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जिसमें कई लोग मारे गए.
हालिया संघर्ष की शुरुआत 7-8 अक्तूबर की दरमियानी रात को हुई थी, जब पाकिस्तानी सेना ने दावा किया कि उसने ओरकज़ई में ख़ुफ़िया जानकारी के आधार पर कार्रवाई की.
8 अक्तूबर को पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग ने एक बयान में कहा कि 7-8 अक्तूबर की रात को चले ऑपरेशन में 19 चरमपंथी मारे गए.
8 अक्तूबर को ही पाकिस्तानी रक्षा मंत्री ख़्वाजा आसिफ़ ने संसद में कहा था कि सरकार और सेना का धैर्य ख़त्म हो गया है और जिन लोगों ने चरमपंथियों को शरण दी है उन्हें अब इसके नतीजे भुगतने होंगे.
पाकिस्तान कई साल से अफ़ग़ानिस्तान की तालिबान सरकार से प्रतिबंधित तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग करता है. हाल के समय में यह मांग और तेज़ हो गई है.
पाकिस्तान ने टीटीपी के लड़ाकों पर पाकिस्तानी सैनिकों और नागरिकों पर हमला करने का आरोप लगाया है. उसका यह भी आरोप है कि अफ़ग़ान नागरिक पाकिस्तान में हुए कई चरमपंथी हमलों में शामिल रहे हैं.
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