अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दोहराया है कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान की बीच संघर्ष रोकने के लिए ट्रेड का इस्तेमाल किया था. लेकिन भारत इस बात से साफ़ इनकार कर चुका है कि ट्रेड के बारे में कोई बातचीत नहीं हुई थी.
अपनी सऊदी यात्रा के दौरान मंगलवार को एक स्पीच में ट्रंप ने कहा है, "मैंने काफी हद तक व्यापार का इस्तेमाल किया. मैंने कहा कि चलो एक सौदा करते हैं, परमाणु मिसाइलों का ट्रेड रोकते हैं और उन चीजों का व्यापार करते हैं जिन्हें आप इतनी खूबसूरती से बनाते हैं."
इससे पहले सोमवार को ट्रंप ने दावा किया था कि 'उन्होंने भारत और पाकिस्तान पर ये कहते हुए सीज़फ़ायर के लिए दबाव डाला था कि अगर ये नहीं हुआ तो वो दोनों देशों के साथ ट्रेड (व्यापार) ख़त्म कर देंगे.'
मंगलवार को भारतीय विदेश विभाग के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि 7 मई से 10 मई तक भारत और अमेरिका के नेताओं के बीच बातचीत हुई थी, लेकिन ट्रेड को लेकर कोई बातचीत नहीं हुई.

डोनाल्ड ट्रंप का दूसरा राष्ट्रपति कार्यकाल और उनकी विदेश नीति विरोधाभासों से भरी हुई दिखाई देती है.
दुनिया भर में चल रहे बड़े संघर्षों को लेकर राष्ट्रपति ट्रंप का रुख़ क्या होगा, उसका ठीक-ठीक अंदाज़ा लगाना कठिन है. रूस-यूक्रेन युद्ध से लेकर भारत-पाकिस्तान संघर्ष तक, राष्ट्रपति ट्रंप समय-समय पर अपने बयान बदलते रहे हैं.
इतना ही नहीं वे डेनमार्क से ग्रीनलैंड खरीदने, कनाडा को अमेरिका का 51वां राज्य बनाने से लेकर ग़ज़ा पट्टी पर 'कब्जा' करने जैसे विवादास्पद बयान दे चुके हैं.
सवाल है कि आखिर वे चाहते क्या हैं? और उनकी विदेश नीति में केंद्र में क्या है? क्या सहयोगी देशों का भरोसा उनके लिए मायने रखता है?
बात सबसे पहले भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर अमेरिका के बदलते रुख की.
भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर बदलता रुख़
22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले में 26 लोगों की जान गई. इसके जवाब में भारत ने 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत की.
भारत का कहना है कि इस ऑपरेशन के तहत उसने पाकिस्तान और पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर में स्थित "9 आतंकी ठिकानों पर सटीक हवाई हमले किए".
ऑपरेशन सिंदूर के एक दिन बाद यानी 8 मई को अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेडी वेंस ने फॉक्स न्यूज को एक इंटरव्यू दिया.
इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के मामले में अमेरिका दूरी बनाकर रखेगा और कूटनीतिक रास्ते अपनाएगा.
उन्होंने कहा, "हम जो कर सकते हैं वह यह है कि दोनों देशों को तनाव कम करने के लिए प्रोत्साहित करने की कोशिश करें, लेकिन हम मूल रूप से युद्ध में शामिल नहीं होने जा रहे हैं. यह हमारा काम नहीं है."
वेंस का कहना था कि अमेरिका, भारत और पाकिस्तान को हथियार डालने के लिए नहीं कह सकता, लेकिन दो दिन बाद राष्ट्रपति ट्रंप के बयान ने सबको चौंका दिया.
सीज़फ़ायर या हमले रोकने से जुड़ी कोई बात भारत की तरफ से आती, उससे पहले ही राष्ट्रपति ट्रंप ने "भारत और पाकिस्तान के बीच तत्काल और पूर्ण संघर्ष विराम पर सहमति बनने" की जानकारी सोशल मीडिया 'ट्रुथ सोशल' पर पोस्ट कर दी .
ट्रंप ने 'ट्रुथ सोशल' में अपने हैंडल पर एक पोस्ट में कहा, "अमेरिका की मध्यस्थता में हुई एक लंबी बातचीत के बाद, मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि भारत और पाकिस्तान ने पूर्ण और तत्काल सीजफ़ायर पर सहमति जताई है."
इसके बाद अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट कर कहा कि भारत और पाकिस्तान ने व्यापक मुद्दों पर बातचीत शुरू करने पर राज़ी हो गए हैं.
अमेरिकी विदेश मंत्री ने बयान में कहा गया, "पिछले 48 घंटों में उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और मैंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़, भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर, पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष असीम मुनीर, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार असीम मलिक के साथ-साथ भारत और पाकिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बातचीत की है."
हालांकि अमेरिका की इस घोषणा पर भारत की जो प्रतिक्रिया आई वो गर्मजोशी वाली नहीं थी.
भारतीय विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर ने एक्स पर लिखी पोस्ट में कहीं भी अमेरिका का नाम नहीं लिया कि उसने युद्ध विराम के लिए मध्यस्थता की है.

अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही ट्रंप ने कहा कि ग्रीनलैंड और पनामा नहर पर उनके देश का कब्जा होना चाहिए.
उन्होंने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्रूथ पर लिखा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा और दुनिया में कहीं भी जाने की आज़ादी के लिए अमेरिका महसूस करता है कि ग्रीनलैंड पर नियंत्रण बहुत जरूरी है.
हालांकि ग्रीनलैंड के प्रधानमंत्री म्यूट इग़ा ने जवाब देते हुए कहा था, "हम बिकाऊ नहीं हैं."
ऐसा ही जवाब पनामा के राष्ट्रपति मुलिनो ने राष्ट्रपति ट्रंप को दिया था. उनका कहना था, "यह नहर किसी ने हमें ख़ैरात में नहीं दी है. हमारे लोगों ने इसके लिए कई पीढ़ियों तक संघर्ष किया है."
वहीं जब कनाडा को अपना 51वां राज्य बनाने की बात अमेरिका ने की, तो दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ गया.
ट्रंप के पहले कार्यकाल में एक साल से भी अधिक समय तक राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे जॉन बोल्टन भी ट्रंप की नीतियों से खुश नहीं हैं.
वे भी कह चुके हैं, "'ट्रंप के पास कोई नजरिया नहीं है. उनके पास आइडिया हैं. लेकिन वो सुसंगत पैटर्न पर काम नहीं करते. उनकी नीतियों में कोई स्ट्रेटजी नहीं है."
ट्रंप की आलोचना तब भी हुई, जब उन्होंने ग़ज़ा पट्टी पर अमेरिकी नियंत्रण की बात कही, क्योंकि दशकों से अमेरिका 'दो देशों' के समाधान वाली योजना का समर्थक रहा है.
ऐसा ही रवैया रूस-यूक्रेन युद्ध में भी दिखाई दिया. शुरुआत में उन्होंने यूक्रेन की संप्रभुता का समर्थन किया, लेकिन बाद में सैन्य सहायता रोक दी.
अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषज्ञ स्वास्ति राव का कहना है कि राष्ट्रपति ट्रंप हमेशा डील करवाने की जल्दी में रहते हैं, इसलिए उनकी विदेश नीति असमंजस से भरी हुई है.
वे कहती हैं, "ट्रंप को इतिहास की कम समझ है. रूस-यूक्रेन युद्ध, ईरान समझौता, मध्य पूर्व की स्थिति से लेकर भारत-पाकिस्तान संघर्ष तक वे डील करवाकर क्रेडिट लेने की होड़ में हैं. वे नोबेल पुरस्कार पाना चाहते हैं."
भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर ट्रंप के रवैये की आलोचना करते हुए स्वास्ति राव कहती हैं, "सिर्फ अमेरिका ही नहीं, बल्कि सऊदी अरब, ईरान और यूएई जैसे देश पर्दे के पीछे से मध्यस्थता करवाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन ट्रंप ने इस मामले में उस डिप्लोमेटिक लाइन को पार किया है, जिसे पार नहीं किया जाना चाहिए था. इससे सहयोगियों के बीच विश्वास कम होता है."
वे कहती हैं, "अचानक से ट्रंप ने कुछ दिनों के लिए यूक्रेन की सहायता बंद कर दी. इससे यूरोपीय देश सकते में आ गए. इसका असर ये हुआ कि ये देश अपनी सेना को मजबूत करने में लग गए."
उनका मानना है, "राष्ट्रपति ट्रंप ने सभी पुराने समीकरण ध्वस्त कर दिए हैं. दोस्त और दुश्मन से वे क्या बात करेंगे, ये आप ठीक-ठीक नहीं कह सकते."
वहीं दूसरी तरफ 'द इमेज इंडिया इंस्टीट्यूट' के अध्यक्ष रॉबिंद्र सचदेव ऐसा नहीं मानते कि ट्रंप की विदेश नीति असमंजस से भरी हुई है.
वे कहते हैं, "ट्रंप से पहले अमेरिका का वेटेड एवरेज ऑफ ट्रेड टैरिफ करीब 2.5 प्रतिशत था. वहीं इंडिया का करीब 12 प्रतिशत, चीन, यूरोपियन यूनियन का करीब 8 प्रतिशत था. टैरिफ की बड़ी-बड़ी बातों से पीछे आते हुए वे इसे 2.5 प्रतिशत से 10 प्रतिशत पर ले गए. लोगों को लगा कि वे टैरिफ के सवाल पर आगे पीछे जाते हैं, लेकिन लंबे समय में यह अमेरिका को फायदा पहुंचा रहा है."
सचदेव कहते हैं, "यूक्रेन को सैन्य सहायता बंद करने की धमकियां दी, हल्ला मचा और आखिर में देखिए क्या हुआ. ट्रंप ने यूक्रेन से एक बहुत बड़ी मिनिरल डील की है. ये बताता है कि वे इन बड़ी बड़ी बातों के बीच अमेरिका के लिए कैसे काम कर रहे हैं."
रॉबिंद्र का मानना है, "ट्रंप जिस भाषा का इस्तेमाल करते हैं उस पर नहीं जाना चाहिए. हमें अमेरिका और ट्रंप को देखने के लिए अपने लेंस को बदलने की ज़रूरत है. ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति की शक्ति को दोबारा परिभाषित कर रहे हैं और उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि बाक़ी लोग क्या सोचते हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि अमेरिका एक सुपर पावर हैं."
(बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित)
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