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प्रशांत किशोर बिहार चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाह रहे?

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Santosh Kumar/Hindustan Times via Getty Images बीते साल बिहार में छात्रों के धरना प्रदर्शन में हिस्सा लेने पहुंचे जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर (सांकेतिक तस्वीर)

बिहार में पटना के वीरचंद पटेल पथ के पीछे पेड़ा-दही की दुकान लगाने वाले राकेश यादव रोज़ाना राघोपुर (वैशाली) से आते-जाते हैं.

राघोपुर, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव या यूं कहें लालू परिवार की परंपरागत सीट रही है.

राकेश यादव दही तौलते हुए मुस्कराते हैं और कटाक्ष भरे अंदाज़ में कहते हैं, "प्रशांत किशोर बोलते थे कि राघोपुर से चुनाव लड़ेंगे. एक दिन घूमकर आए उन्हें स्थिति समझ आ गई. वहां तो सिर्फ़ तेजस्वी की जीत है."

दरअसल, प्रशांत किशोर ने पहले कहा था कि वो राघोपुर से चुनाव लड़ सकते हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव की घोषणा के बाद उन्होंने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है.

प्रशांत किशोर के इस फ़ैसले और उनकी पार्टी जन सुराज में टिकट बंटवारे के बाद मचे घमासान ने चाय की टपरियों से लेकर घरों की बैठकों तक यह सवाल उठा दिया है कि वैकल्पिक राजनीति की बात करने वाली जन सुराज का क्या होगा? प्रशांत चुनाव क्यों नहीं लड़ रहे?

सवाल ये भी उठ रहा है कि जिन लोगों ने टिकट की आस में जन सुराज जॉइन किया था या उसकी रैलियों में भीड़ जुटाई थी, उनका क्या होगा?

जन सुराज ने बिहार की कुल 243 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया है. अब तक क़रीब 200 उम्मीदवारों को पार्टी सिंबल दे दिया गया है.

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12 हज़ार ने किया था आवेदन image ANI राघोपुर में 'बिहार बदलाव यात्रा' के दौरान जन सुराज पार्टी प्रमुख प्रशांत किशोर

बिहार विधानसभा में जन सुराज से चुनाव लड़ने की इच्छा रखने वाले उम्मीदवारों के लिए पार्टी ने आवेदन शुल्क 21 हज़ार रुपये रखा था.

पार्टी के मुताबिक़, 12 हज़ार लोगों ने उम्मीदवारी के लिए ऑनलाइन आवेदन किया था, लेकिन लगभग 1,500 लोगों ने ही शुल्क जमा किया.

इस संख्या को देखें तो जमा शुल्क के साथ हर विधानसभा क्षेत्र से औसतन छह आवेदन आए थे. 21 हज़ार रुपये देकर उम्मीदवारी के लिए आवेदन का यह प्रयोग बिहार में पहली बार हुआ था.

यही वजह रही कि 9 अक्तूबर और 13 अक्तूबर को जब पटना में जन सुराज के कुल 116 उम्मीदवारों का एलान हुआ, तो काफ़ी हंगामा हुआ.

जिन लोगों को टिकट नहीं मिला, उन्होंने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में और सोशल मीडिया पर जमकर ग़ुस्सा जताया.

बीती 17 अक्तूबर को भी जब मैं शेखपुरा हाउस (जनसुराज के राष्ट्रीय अध्यक्ष उदय सिंह की कोठी) पहुँची, तो वहाँ भी यही ग़ुस्सा देखने को मिला.

दरअसल, पार्टी अपने उम्मीदवारों को सिंबल देने की प्रक्रिया में थी, लेकिन इस बीच आवेदन करने वाले कई लोग भी शेखपुरा हाउस पहुँच गए थे.

बीबीसी हिन्दी ने फुलपरास विधानसभा से आए ऐसे पाँच लोगों से बातचीत की, जिन्होंने टिकट के लिए आवेदन किया था.

'प्रशांत किशोर के लिए सब कुछ किया' image Shahnawaz Ahmad/BBC फुलपरास से आए आवेदक जिन्होंने 21 हज़ार का शुल्क चुकाकर आवेदन किया था

मार्केटिंग प्रोफेशनल और मुंबई में काम कर रहे मनोज मिश्रा ने अपनी नौकरी छोड़कर फुलपरास विधानसभा से चुनाव लड़ने आए थे.

बीबीसी हिन्दी से वे कहते हैं, "मैं प्रशांत किशोर की बातों से प्रभावित होकर यहां आया था और अपने गांव में रहकर जनवरी से काम करना शुरू किया. जन सुराज ने हमें जो टास्क दिए चाहे वो 5,000 सदस्य बनाना हो, पांच बड़ी सभाएं करना हो या परिवार लाभ कार्ड बनाना, सब कुछ मैंने किया. लेकिन मुझे टिकट नहीं मिला. हमने प्रशांत किशोर के लिए सब कुछ किया लेकिन हमें कुछ नहीं मिला."

उनके पास खड़े आरटीआई एक्टिविस्ट कमल भंडारी भी कहते हैं, "हम लोग कई घंटों से यहां इंतज़ार कर रहे हैं, लेकिन यहां प्रशांत किशोर के लोग ठीक से बर्ताव भी नहीं करते. हम आरटीआई एक्टिविस्ट हैं और लोगों की चोरी पकड़ते हैं. लेकिन यहां तो हमारे साथ ही चोरी हो गई. इन लोगों को लगता है कि चुनाव सोशल मीडिया से लड़ा जाता है तो सोशल मीडिया पर ही चुनाव करा लें."

image BBC

फुलपरास से ही आई बबीता कुमारी ग़ुस्से में कहती हैं, "इन्होंने कहा था कि राजा का बेटा राजा नहीं बनेगा, 40 महिलाओं को टिकट देंगे, लेकिन ये तो अपना कोई वादा पूरा नहीं कर रहे. हमको जो दायित्व दिया गया, जो शुल्क लिया गया, सब हमने निभाया लेकिन हमें कुछ नहीं मिला."

अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों से आए कई और लोग भी इसी तरह नाउम्मीद नज़र आए.

भविष्य का सवाल पूछने पर बबीता कुमारी बीबीसी हिन्दी से कहती हैं, "हम लोग प्रशांत किशोर से मिलकर तय करेंगे कि हम आगे क्या करेंगे. अब किसी पार्टी में थोड़े ही ना जा सकते हैं. सबसे ज़्यादा शोषण महिला का होता है, जो अपना घर-परिवार छोड़कर पार्टी का काम करती रहती है."

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प्रचार के लिए पूरे बिहार में सक्रिय रहेंगे: पार्टी पदाधिकारी image Shahnawaz Ahmad/BBC जन सुराज़ के चुनाव अभियान समिति अध्यक्ष सुधीर शर्मा कहते हैं पीके उनकी पार्टी के स्टार प्रचारक हैं. उन्हें किसी एक सीट से लड़वाना पार्टी हित में नहीं है

क़रीब तीन साल से बिहार के अलग-अलग हिस्सों में यात्रा कर रहे प्रशांत किशोर मूल रूप से अपनी सभाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार की बात करते हैं.

वो वैकल्पिक राजनीति की बात करते हैं और लोगों से अपील करते हैं कि "आप अपने लिए नहीं, बल्कि अपने बच्चों के लिए वोट दें."

इसी वजह से कई प्रोफे़शनल्स और एक्टिविस्ट बड़ी संख्या में जन सुराज से जुड़े और पार्टी के लिए सक्रियता से काम करने लगे. इन लोगों का कहना है कि ये सभाओं के लिए भीड़ जुटाते थे और 'परिवार लाभ कार्ड' (पीएलसी) के सदस्य बनाते थे.

बता दें, परिवार लाभ कार्ड या पीएलसी एटीएम कार्ड जैसा दिखता है. इस कार्ड के साथ जन सुराज की एक अपील भी जुड़ी है, जिसमें लिखा है कि अगर पार्टी सत्ता में आती है तो वह शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर अपने वायदे पूरे करेगी.

पार्टी का दावा है कि बिहार में अब तक दो करोड़ से अधिक ऐसे पीएलसी कार्ड बांटे जा चुके हैं.

image Shahnawaz Ahmad/BBC पार्टी इस तरह के परिवार लाभ कार्ड बिहार के कई परिवारों को दे चुकी है

जन सुराज की चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष सुधीर शर्मा बीबीसी हिन्दी से कहते हैं, "लोगों ने पार्टी के लिए काम किया है, इसलिए उन्हें उम्मीद भी है. लेकिन उम्मीदवारी तो सिर्फ़ 243 लोगों को ही मिलेगी. सबकी उम्मीदें पूरी नहीं की जा सकतीं. ऐसे में ग़ुस्सा भी है, लेकिन मेरा मानना है कि ये ग़ुस्सा धीरे-धीरे कम होगा. अगर पार्टी मज़बूत होती है, तो हम इन्हीं कार्यकर्ताओं को आयोग और परिषद में भेजेंगे."

सुधीर शर्मा से हमने पूछा कि बार-बार चुनाव लड़ने की बात करने वाले प्रशांत किशोर ने आख़िरी वक़्त में चुनाव न लड़ने का फ़ैसला क्यों लिया?

इस सवाल पर सुधीर शर्मा ने कहा, "पार्टी उन्हें एक सीट में बांधकर नहीं रखना चाहती. वो हमारे स्टार कैंपेनर हैं और उन्हें 243 विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार के लिए जाना होगा. इसलिए पार्टी ने फ़ैसला लिया कि प्रशांत किशोर चुनाव नहीं लड़ेंगे. वो बिहार में किसी पद या सीट की राजनीति नहीं कर रहे, बल्कि एक विज़न के साथ आए हैं. इसलिए उनका चुनाव न लड़ना पार्टी के हित में है."

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'प्रशांत किशोर बार्गेनर बनना चाहते हैं' image Shahnawaz Ahmad/BBC पुष्पेंद्र कहते हैं कि प्रशांत किशोर की राजनीति चिराग पासवान की राह पर है

प्रशांत किशोर के हालिया बयानों को देखें तो उनमें स्थायित्व की कमी दिखती है.

पहले वे अपने दम पर सरकार बनाने का दावा करते थे, लेकिन अब कहते हैं कि "जन सुराज या तो अर्श पर रहेगा या फर्श पर."

इसी तरह उन्होंने राघोपुर या करहगर से चुनाव लड़ने की बात कही थी, लेकिन अब उससे भी पीछे हट गए हैं.

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के पूर्व प्रोफ़ेसर पुष्पेंद्र कहते हैं, "प्रशांत किशोर अब तक रणनीतिकार की भूमिका में थे. उनका काम टेक्नोलॉजी के ज़रिए किसी पार्टी की जीत को आसान बनाना था. यानी पार्टियों का अपना संगठन पहले से था और प्रशांत उसे तकनीकी रूप से मज़बूती देते थे."

वो कहते हैं, "लेकिन जब उनकी अपनी पार्टी है, तो उन्हें ज़मीन पर संगठन तैयार करना होगा. प्रशांत किशोर अपनी इस सीमा को समझ चुके हैं, और इसलिए भी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं."

image BBC

प्रशांत किशोर की दीर्घकालिक राजनीति को लेकर पूछने पर पुष्पेंद्र कहते हैं, "वो इस बार सभी सीटों पर लड़कर थोड़ा वोट बैंक अपने पक्ष में करना चाहते हैं. और बिहार की राजनीति में चिराग पासवान की तरह अपनी एक 'स्पॉयलर इमेज़' यानी किसी का खेल या समीकरण बिगाड़ने वाले की छवि बनाना चाहते हैं. ऐसे में अगली बार चुनाव होने पर वो किसी गठबंधन का हिस्सा बन सकते हैं और उसके भीतर वैसे ही सौदेबाज़ी कर सकते हैं, जैसे चिराग अभी कर रहे हैं."

गांधी और आंबेडकर को वैचारिक रूप से अपनाने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर को लेकर अभी बिहार के मतदाताओं और विश्लेषकों के मन में कई सवाल हैं.

इन सवालों के जवाब, चुनावी शतरंज पर जन सुराज के प्रदर्शन और उसके बाद प्रशांत किशोर की रणनीति ही देगी.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित.

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