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दिल्ली में एक अनोखी दोस्ती की कहानी

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दिल्ली में रहने का अनुभव

कुछ आवश्यक कारणों से मुझे छह महीने के लिए दिल्ली में रहना पड़ा।


वहाँ रहते हुए, लगभग तीन महीने बाद, मेरी मुलाकात पड़ोस में रहने वाली एक महिला से हुई, जिनका नाम शकीना था।


शकीना के साथ दोस्ती

मैं अक्सर मार्केट से उनके लिए सामान लाता था। बातचीत के दौरान पता चला कि उनका एक साल पहले तलाक हो चुका है और वह अकेली रहती हैं, क्योंकि उनके पति का किसी और के साथ संबंध था।


इस जानकारी के बाद, मैंने उनकी हरसंभव मदद करने का निर्णय लिया।


हम दोनों अच्छे दोस्त बन गए।


एक खास बातचीत

एक दिन शकीना ने मुझे फोन किया और कहा, "सल्लू, आज मुझे घर पर मन नहीं लग रहा। क्या तुम थोड़ी देर के लिए मेरे कमरे पर आ सकते हो?"


मैंने हाँ कहा और कुछ ही मिनटों में उनके कमरे में पहुँच गया। वहाँ पहुँचते ही उन्होंने मुझे गले लगा लिया और रोने लगीं।


उन्होंने कहा कि मैं उनका कितना ख्याल रखता हूँ, जबकि उनके पति ने कभी उनकी कदर नहीं की।


भावनाओं का इज़हार

मैंने उन्हें चुप कराने की कोशिश की और देर रात तक हम बातें करते रहे। उन्होंने भावुक होकर कहा कि मैं बहुत अच्छा लड़का हूँ और वह मुझे पसंद करने लगी हैं।


उन्होंने कहा, "आज से तुम ही मेरे सब कुछ हो, आज से मैं तुम्हारी हुई।"


फिर उन्होंने मुझसे पूछा कि मैं क्या चाहता हूँ और कहा कि वह मुझे मना नहीं करेंगी।


दिल्ली चुनाव का वादा

मैंने मौके का फायदा उठाते हुए शकीना से कहा, "अगर तुम सच में मना नहीं करोगी, तो मुझसे वादा करो।"


मैंने कहा, "दिल्ली में चुनाव हैं, और तुम वादा करो कि तुम भाजपा को वोट दोगी और अपना कागज ढूंढ लेना।"


यह कहकर मैं वापस अपने कमरे में जाकर सो गया।


मेरी प्राथमिकताएँ

मेरे लिए मोदी जी और देश और सनातन से बढ़कर कोई नहीं है। बाकी तो आपको पता ही होगा कि आगे क्या होगा।


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