बीजिंग, 1 सितंबर . 1938 में, चीनी जनता के जापानी अतिक्रमण विरोधी युद्ध के दौरान, भारतीय चिकित्सक द्वारकानाथ संतराम कोटनीस चिकित्सा सहायता दल के सदस्य के रूप में चीन पहुंचे. युद्ध में चीन की सहायता करने के अपने संकल्प को व्यक्त करने के लिए, कोटनीस ने अपने नाम के लिए चीनी अक्षर “हुआ” (हुआ) अपनाया. चीन में अपने चार वर्षों के दौरान, डॉ. कोटनीस ने अथक परिश्रम करके लोगों की जान बचाने और घायलों के उपचार में अपना योगदान दिया. 1942 में, 32 वर्ष की आयु में, डॉ. कोटनीस का निधन हो गया और चीन में ही उनका अंतिम संस्कार किया गया.
डॉ. कोटनीस के परिवार को 3 सितंबर को चीनी जनता के जापानी अतिक्रमण विरोधी युद्ध और विश्व फासीवाद विरोधी युद्ध विजय की 80वीं वर्षगांठ मनाने के समारोह में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाएगा. चाइना मीडिया ग्रुप के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, उन्होंने डॉ. कोटनीस की अन्तर्राष्ट्रीयतावाद भावना को आगे बढ़ाने और विश्व शांति एवं सौहार्द बनाए रखने में योगदान देने की आशा व्यक्त की.
डॉ. कोटनीस की भतीजी सुमंगला ने कहा कि हमें डॉ. कोटनीस की अंतर्राष्ट्रीयता और निस्वार्थ समर्पण की भावना को अपनाना चाहिए. सभी देशों को शांति और सद्भाव के लिए प्रयास करना चाहिए, करुणा बनाए रखनी चाहिए और विवादों का सौहार्दपूर्ण समाधान करना चाहिए. केवल इसी तरह दुनिया एक बेहतर जगह बन सकती है. सुमंगला के पति, बोका, भी एक डॉक्टर हैं. उन्होंने एक बार अपने परिवार के साथ चीन की यात्रा की थी और वहां उन्होंने डॉ. कोटनीस के प्रति चीनी लोगों के प्रेम को महसूस किया था. उन्होंने कहा कि हम आशा करते हैं कि डॉ. कोटनीस की अन्तर्राष्ट्रीयतावाद भावना सदैव जीवित रहेगी.
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप ,पेइचिंग)
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