New Delhi, 30 अगस्त . वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के 23वें विधि आयोग के सदस्य हितेश जैन ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और वकीलों के एक वर्ग की तीखी आलोचना की है, जिसे उन्होंने ‘न्यायिक स्वतंत्रता की आड़ में राजनीतिक सक्रियता’ करार दिया है.
उनके इस बयान ने न्यायिक हलकों में नई बहस छेड़ दी है. हितेश जैन के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए न्यायमूर्ति अजीत सिन्हा ने कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की टिप्पणियां उनकी व्यक्तिगत राय और विवेक का हिस्सा हैं.
उन्होंने कहा, “सच्चाई यह है कि ये जज कभी कॉलेजियम और न्यायिक व्यवस्था का हिस्सा थे. उन्हें अच्छी तरह पता है कि आज भी कानून और कॉलेजियम की प्रक्रिया वही है. कॉलेजियम के तहत यह अधिकार है कि वह बहुमत के आधार पर नियुक्तियों की सिफारिश करें. यह व्यवस्था चल रही है और इसे चलना चाहिए.”
उन्होंने जोर देकर कहा कि सेवानिवृत्त जजों द्वारा की जा रही आलोचना को नजरअंदाज करना चाहिए. उन्होंने कहा, “जजमेंट की आलोचना या सुधार की बात करना अवमानना नहीं है. कोई कह सकता है कि कोई फैसला गलत है, यह उसका अधिकार है. लेकिन, पूर्व जजों द्वारा दबाव बनाना या अनावश्यक आलोचना करना उचित नहीं है.”
सिन्हा ने कहा, “56 पूर्व जजों द्वारा हस्ताक्षरित बयान भी अनावश्यक था. इस तरह की कार्रवाइयों से बचा जाना चाहिए.” उन्होंने न्यायपालिका की सबसे बड़ी समस्या पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वास्तविक मुद्दा लंबित मामलों और सुनवाई में देरी है.
उन्होंने कहा, “असल परेशानी यह है कि जल्दी सुनवाई नहीं हो पा रही. इस पर चर्चा होनी चाहिए. अगर इस दिशा में काम नहीं हुआ तो लोगों का न्यायपालिका से भरोसा उठ सकता है. न्यायिक प्रक्रिया को तेज करने और लंबित मामलों को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.”
उन्होंने रिटायर्ड जजों द्वारा किसी एक मुद्दे को लेकर बनाए जा रहे माहौल को अनुचित ठहराया. उन्होंने कहा, “न्यायपालिका की सबसे बड़ी चुनौती देरी से फैसले देना है. इस पर चर्चा और सेमिनार होने चाहिए. स्वस्थ आलोचना हमेशा स्वागत योग्य है, लेकिन पक्षपातपूर्ण टिप्पणियों से बचना चाहिए.”
उन्होंने जोर देकर कहा कि रिटायरमेंट के बाद ऐसी आलोचनाएं शुरू करना अनुचित है. समाज के प्रति जिम्मेदारी के साथ आलोचना की जानी चाहिए. सही और रचनात्मक आलोचना जरूरी है, लेकिन उसकी सीमा तय होनी चाहिए. हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी टिप्पणियां समाज के हित में हों और न्यायपालिका की गरिमा को बनाए रखें.
–
एकेएस/एबीएम
You may also like
औलाद पर निर्भर मत रहना, समय रहते अपने बुढ़ापे का इंतज़ाम कर लेना
गाँव के छोर पर बंसी काका रहते थे। उम्र ढल चुकी थी, मगर हिम्मत अब भी बैल जैसी थी। बेटे शहर का रुख कर चुके थे, खेत-खलिहान भी धीरे-धीरे बिक-बिक कर कम हो चले थे। अब उनके पास बस एक कच्चा मकान था, थोड़ा-सा आँगन और उनकी सबसे बड़ी साथी—बकरी लाली
करोड़पति बनने के 5 देसी व्यापार जो हर कोई कर सकता है,बस यह चीज सीख लें
एक बार एक बहुत शक्तिशाली सम्राट हुआ। उसकी बेटी इतनी सुंदर थी कि देवता तक सोचते थे—अगर उससे विवाह हो जाए तो उनका जीवन धन्य हो जाएगा। उसकी सुंदरता की चर्चा पूरी त्रिलोकी में फैल गई थी। सम्राट भी यह जानते थे। एक रात सम्राट पूरी रात अपने कक्ष में टहलते रहे। सुबह महारानी ने देखा और
एक दिन सही कीमत सही जगह पर ही मिलती है एक पिता जो बुढ़ापे में बिस्तर पर पड़ा था, उसने अपनी बेटी को बुलाया और कहा, “बेटी, मैंने तुम्हें खूब पढ़ाया-लिखाया और एक शिक्षित व्यक्ति बनाया है। अगर मैं मर गया, तो मैं तुम्हारे लिए जीवन भर कोई संपत्ति नहीं बनाऊंगा। मैंने जो भी कमाया है, वह तुम्हारी पढ़ाई पर खर्च हो गया