New Delhi, 22 अक्टूबर . भारतीय नौसेना का स्वदेश निर्मित शिवालिक श्रेणी का गाइडेड मिसाइल स्टील्थ फ्रिगेट आईएनएस सह्याद्रि ने 16 से 18 अक्टूबर तक जापान-India समुद्री अभ्यास (जेएआईएमईएक्स-25) में हिस्सा लिया. इस अभ्यास के समुद्री चरण के बाद आईएनएस सह्याद्रि 21 अक्टूबर को जापान के योकोसुका बंदरगाह पर पहुंचा, जहां उसने हार्बर चरण की गतिविधियों में भाग लिया.
योकोसुका पहुंचने से पहले आईएनएस सह्याद्रि ने जापान मैरीटाइम सेल्फ-डिफेंस फोर्स (जेएमएसडीएफ) के जहाज असाही, ओमी और पनडुब्बी जिनरयू के साथ मिलकर समुद्री चरण में भाग लिया. इस दौरान दोनों देशों की नौसेनाओं ने उन्नत पनडुब्बी रोधी युद्धाभ्यास, मिसाइल रक्षा संचालन, उड़ान संचालन और समुद्र में पुनःपूर्ति जैसे जटिल सैन्य अभ्यास किए. इन अभियानों का उद्देश्य दोनों नौसेनाओं के बीच अंतर-संचालन क्षमता और समन्वय को और मजबूत करना था.
जेएआईएमईएक्स-25, साल 2014 में India और जापान के बीच स्थापित ‘विशेष रणनीतिक और वैश्विक साझेदारी’ का प्रतीक है. यह अभ्यास हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने की साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है. India और जापान की नौसेनाएं इस साझेदारी को स्वतंत्र, खुले और समावेशी हिंद-प्रशांत के साझा दृष्टिकोण के तहत आगे बढ़ा रही हैं.
योकोसुका बंदरगाह पर आयोजित हार्बर चरण के दौरान आईएनएस सह्याद्रि के नौसैनिक दल और जापानी नौसैनिक बल की इकाइयों ने कई व्यावसायिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. इसमें एक-दूसरे के पोतों का दौरा, सहयोगात्मक संचालन योजना, सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं को साझा करना और सौहार्द व एकता को बढ़ावा देने के लिए संयुक्त योग सत्र शामिल रहे. यह पोर्ट कॉल हिंद-प्रशांत क्षेत्र में आईएनएस सह्याद्रि की लंबी दूरी की तैनाती के दौरान एक महत्वपूर्ण पड़ाव है.
वर्ष 2012 में जलावतरण के बाद से आईएनएस सह्याद्रि India की स्वदेशी नौसैनिक तकनीक का प्रतीक रहा है. यह बहु-भूमिका निभाने वाला स्टील्थ फ्रिगेट ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण को साकार करता है और भारतीय नौसेना की सामरिक क्षमता में अहम योगदान दे रहा है. आईएनएस सह्याद्रि अब तक कई द्विपक्षीय और बहुपक्षीय नौसैनिक अभियानों, अभ्यासों और परिचालन तैनातियों में भाग लेकर अपनी दक्षता का प्रदर्शन कर चुका है.
India और जापान के बीच बढ़ता रक्षा सहयोग न केवल सामरिक साझेदारी का प्रतीक है, बल्कि यह दोनों देशों के बीच गहरे विश्वास और साझा दृष्टिकोण को भी मजबूत करता है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
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एएसएच/डीकेपी