छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले से नक्सल विरोधी अभियान में एक बड़ी कामयाबी सामने आई है, जहां एक ही दिन में 71 नक्सलियों ने एक साथ आत्मसमर्पण कर दिया। यह बीते वर्षों में राज्य में वामपंथी उग्रवाद (एलडब्ल्यूई) के खिलाफ जारी लड़ाई की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक मानी जा रही है।
बुधवार को आत्मसमर्पण करने वाले इन नक्सलियों में से 30 पर राज्य सरकार ने 50,000 से लेकर 8 लाख रुपये तक के इनाम घोषित किए थे, जिनकी कुल राशि 64 लाख रुपये बैठती है। इन सभी ने पुलिस अधीक्षक गौरव राय और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में आत्मसमर्पण किया, जिससे बस्तर क्षेत्र में सुरक्षा परिदृश्य में एक बड़ा बदलाव देखा जा रहा है।
पुलिस के अनुसार, यह आत्मसमर्पण राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे प्रभावी अभियानों और जनजागरूकता की वजह से संभव हो सका है। पिछले कुछ महीनों में कई माओवादी नेताओं के मारे जाने और जंगलों में लगातार दबाव बनाए रखने के कारण, संगठन के भीतर असंतोष गहराता गया है। ऐसे में अब बड़ी संख्या में नक्सली हथियार छोड़कर मुख्यधारा की ओर लौट रहे हैं।
राज्य की नवीन आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीति 2025 और "नियेड नेल्ला नार योजना" को इस सफलता का आधार माना जा रहा है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस घटनाक्रम को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा कि अब बस्तर के लोग हिंसा नहीं, विकास और शांति का मार्ग चुन रहे हैं।
उन्होंने बताया कि राज्य के “पूना मार्गम” और “लोन वरट्टू” जैसे अभियानों ने नक्सल प्रभावित इलाकों में भरोसा जगाया है। दिसंबर 2023 से अब तक 1,770 से अधिक नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं, जो सरकार की नीतियों में लोगों के विश्वास को दर्शाता है।
सरकार ने आत्मसमर्पण करने वाले प्रत्येक नक्सली को 50,000 रुपये की प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की है, साथ ही उन्हें सरकारी पुनर्वास योजना के अंतर्गत रोजगार, प्रशिक्षण और सुरक्षा प्रदान की जाएगी।
गृह मंत्री अमित शाह द्वारा छत्तीसगढ़ को एलडब्ल्यूई से मुक्त कराने के दिए गए निर्देशों के बाद से राज्य में सुरक्षा बलों ने अभियान तेज कर दिया है। अब तक 466 से ज्यादा नक्सली मारे जा चुके हैं और हजारों ने आत्मसमर्पण किया है।
राज्य सरकार ने घोषणा की है कि 31 मार्च 2026 तक छत्तीसगढ़ को पूरी तरह नक्सल मुक्त बनाने का लक्ष्य तय किया गया है और इसके लिए हर स्तर पर समन्वय के साथ काम किया जा रहा है।
यह आत्मसमर्पण केवल एक संख्या नहीं है, बल्कि यह संकेत है कि बस्तर और आसपास के इलाके अब डर, हिंसा और उग्रवाद की छाया से बाहर निकलकर स्थायी शांति की दिशा में बढ़ रहे हैं।
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