नई दिल्ली: बिहार विधानसभा चुनाव के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने भारतीय लोकतंत्र के लिए वंशवादी राजनीति को एक बड़ा खतरा बताया है। थरूर के इस बयान से कांग्रेस के लिए खतरा पैदा हो सकता है। बीजेपी इसे हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है। उन्होंने कहा है कि अब समय आ गया है कि भारत में योग्यता को वंशवाद से ऊपर रखा जाए। थरूर के इस बयान पर बीजेपी ने कांग्रेस और राहुल गांधी पर निशाना साधा है। बीजेपी ने कटाक्ष करते हुए कहा कि थरूर 'खतरों के खिलाड़ी' बन गए हैं और उनका अंजाम क्या होगा, यह कहना मुश्किल है क्योंकि 'प्रथम परिवार' (गांधी-नेहरू परिवार) बहुत प्रतिशोधी है।
थरूर ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठन ‘प्रोजेक्ट सिंडिकेट’ के लिए लिखे एक लेख में यह बात कही है, जिसमें उन्होंने भारतीय राजनीति में वंशवाद के गहरे प्रभाव पर प्रकाश डाला है। यह बयान भारत-पाकिस्तान संघर्ष और पहलगाम हमले के बाद उनकी टिप्पणियों को लेकर उठे विवाद के कुछ हफ्तों बाद आया है, जब उनकी राय कांग्रेस के रुख से अलग थी।
बीजेपी का तीखा रिएक्शनथरूर के इस लेख पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में लिखा, ‘भारतीय राजनीति एक पारिवारिक व्यवसाय कैसे बन गई है, इस पर डॉ. शशि थरूर द्वारा लिखित बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख। उन्होंने भारत के ‘नेपो किड’ राहुल और छोटा ‘नेपो किड’ तेजस्वी यादव पर सीधा हमला किया है।’ पूनावाला ने यह भी दावा किया कि यही कारण है कि कांग्रेस के ‘नामदार’ (वंशवादी) लोग प्रधानमंत्री मोदी जैसे ‘कामदार चायवाले’ से नफरत करते हैं।
'सर आपके लिए प्रार्थना कर रहा हूं...'शहजाद पूनावाला ने थरूर के बयान पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘हतप्रभ हूं कि इतनी स्पष्टता से बोलने के लिए डॉ. थरूर का क्या अंजाम होगा।’ उन्होंने एक अन्य पोस्ट में थरूर को ‘खतरों के खिलाड़ी’ बताते हुए कहा कि उन्होंने सीधे तौर पर ‘नेपो किड्स’ या ‘नेपोटिज्म’ के नवाबों को चुनौती दी है। पूनावाला ने अपने अनुभव का हवाला देते हुए कहा, ‘सर (थरूर), जब मैंने 2017 में ‘नेपो’ नामदार राहुल गांधी को चुनौती दी थी तो आप जानते हैं कि मेरे साथ क्या हुआ था। सर आपके लिए प्रार्थना कर रहा हूं...। प्रथम परिवार बहुत प्रतिशोधी है।’ इस तरह, थरूर के बयान ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी है।
'दशकों से एक परिवार भारतीय राजनीति पर हावी'‘इंडियन पॉलिटिक्स आर ए फेमिली बिजनेस’ शीर्षक वाले अपने लेख में, तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर ने कहा कि दशकों से एक परिवार भारतीय राजनीति पर हावी रहा है। उन्होंने बताया कि नेहरू-गांधी परिवार का कांग्रेस से गहरा जुड़ाव है, लेकिन यह सिर्फ कांग्रेस तक सीमित नहीं है। थरूर के अनुसार, राजनीतिक परिदृश्य में वंशवाद का बोलबाला है और यह विचार मजबूत हो गया है कि राजनीतिक नेतृत्व एक जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है। यह सोच भारतीय राजनीति की हर पार्टी, हर क्षेत्र और हर स्तर पर फैली हुई है।
'वंशवादी राजनीति कुछ प्रमुख परिवारों तक ही सीमित नहीं'उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वंशवादी राजनीति केवल कुछ प्रमुख परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्राम सभाओं से लेकर संसद तक, भारतीय शासन के ताने-बाने में गहराई से समाई हुई है। थरूर ने कहा कि यह प्रवृत्ति सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है। उन्होंने पाकिस्तान में भुट्टो और शरीफ परिवारों, बांग्लादेश में शेख और ज़िया परिवारों, और श्रीलंका में भंडारनायके और राजपक्षे परिवारों का उदाहरण देते हुए कहा, ‘सच कहूं तो, इस तरह की वंशवादी राजनीति पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है।’
भारत ने वंशवादी मॉडल को इतनी पूरी तरह क्यों अपनाया?हालांकि, थरूर का मानना है कि यह वंशवादी राजनीति भारत के जीवंत लोकतंत्र के साथ खास तौर पर बेमेल लगती है। उन्होंने सवाल उठाया कि भारत ने वंशवादी मॉडल को इतनी पूरी तरह क्यों अपनाया है? इसका एक कारण यह हो सकता है कि एक परिवार एक ब्रांड के रूप में प्रभावी ढंग से काम कर सकता है। थरूर के अनुसार, यदि मतदाता किसी उम्मीदवार के पिता, चाची या भाई-बहन को स्वीकार करते हैं, तो वे शायद उम्मीदवार को भी स्वीकार कर लेंगे, जिससे विश्वसनीयता बनाने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती।
'वंशवादी राजनीति लोकतंत्र के लिए एक खतरा'शशि थरूर ने इस बात पर फिर से जोर दिया कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। उन्होंने कहा, ‘जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या ज़मीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंश से होता है, तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।’ इसका मतलब है कि योग्य और सक्षम लोगों को अवसर नहीं मिल पाता, और शासन का स्तर गिर जाता है।
थरूर ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठन ‘प्रोजेक्ट सिंडिकेट’ के लिए लिखे एक लेख में यह बात कही है, जिसमें उन्होंने भारतीय राजनीति में वंशवाद के गहरे प्रभाव पर प्रकाश डाला है। यह बयान भारत-पाकिस्तान संघर्ष और पहलगाम हमले के बाद उनकी टिप्पणियों को लेकर उठे विवाद के कुछ हफ्तों बाद आया है, जब उनकी राय कांग्रेस के रुख से अलग थी।
बीजेपी का तीखा रिएक्शनथरूर के इस लेख पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। बीजेपी प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में लिखा, ‘भारतीय राजनीति एक पारिवारिक व्यवसाय कैसे बन गई है, इस पर डॉ. शशि थरूर द्वारा लिखित बहुत ही ज्ञानवर्धक लेख। उन्होंने भारत के ‘नेपो किड’ राहुल और छोटा ‘नेपो किड’ तेजस्वी यादव पर सीधा हमला किया है।’ पूनावाला ने यह भी दावा किया कि यही कारण है कि कांग्रेस के ‘नामदार’ (वंशवादी) लोग प्रधानमंत्री मोदी जैसे ‘कामदार चायवाले’ से नफरत करते हैं।
'सर आपके लिए प्रार्थना कर रहा हूं...'शहजाद पूनावाला ने थरूर के बयान पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘हतप्रभ हूं कि इतनी स्पष्टता से बोलने के लिए डॉ. थरूर का क्या अंजाम होगा।’ उन्होंने एक अन्य पोस्ट में थरूर को ‘खतरों के खिलाड़ी’ बताते हुए कहा कि उन्होंने सीधे तौर पर ‘नेपो किड्स’ या ‘नेपोटिज्म’ के नवाबों को चुनौती दी है। पूनावाला ने अपने अनुभव का हवाला देते हुए कहा, ‘सर (थरूर), जब मैंने 2017 में ‘नेपो’ नामदार राहुल गांधी को चुनौती दी थी तो आप जानते हैं कि मेरे साथ क्या हुआ था। सर आपके लिए प्रार्थना कर रहा हूं...। प्रथम परिवार बहुत प्रतिशोधी है।’ इस तरह, थरूर के बयान ने राजनीतिक गलियारों में नई बहस छेड़ दी है।
'दशकों से एक परिवार भारतीय राजनीति पर हावी'‘इंडियन पॉलिटिक्स आर ए फेमिली बिजनेस’ शीर्षक वाले अपने लेख में, तिरुवनंतपुरम के सांसद शशि थरूर ने कहा कि दशकों से एक परिवार भारतीय राजनीति पर हावी रहा है। उन्होंने बताया कि नेहरू-गांधी परिवार का कांग्रेस से गहरा जुड़ाव है, लेकिन यह सिर्फ कांग्रेस तक सीमित नहीं है। थरूर के अनुसार, राजनीतिक परिदृश्य में वंशवाद का बोलबाला है और यह विचार मजबूत हो गया है कि राजनीतिक नेतृत्व एक जन्मसिद्ध अधिकार हो सकता है। यह सोच भारतीय राजनीति की हर पार्टी, हर क्षेत्र और हर स्तर पर फैली हुई है।
- थरूर ने अपने लेख में कई उदाहरण दिए हैं कि कैसे राजनीतिक पद वंशानुगत हो गए हैं। उन्होंने बताया कि बीजू पटनायक के निधन के बाद, उनके बेटे नवीन पटनायक ने उनकी खाली लोकसभा सीट जीती।
- इसी तरह, महाराष्ट्र में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को पार्टी की कमान सौंपी, और अब उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे भी राजनीति में सक्रिय हैं।
- समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के बेटे अखिलेश यादव भी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और अब सांसद और पार्टी के अध्यक्ष हैं।
- बिहार में, रामविलास पासवान के निधन के बाद उनके बेटे चिराग पासवान ने लोक जनशक्ति पार्टी की कमान संभाली।
- थरूर ने जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, पंजाब और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी वंशवादी राजनीति के उदाहरण गिनाए।
'वंशवादी राजनीति कुछ प्रमुख परिवारों तक ही सीमित नहीं'उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वंशवादी राजनीति केवल कुछ प्रमुख परिवारों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह ग्राम सभाओं से लेकर संसद तक, भारतीय शासन के ताने-बाने में गहराई से समाई हुई है। थरूर ने कहा कि यह प्रवृत्ति सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है। उन्होंने पाकिस्तान में भुट्टो और शरीफ परिवारों, बांग्लादेश में शेख और ज़िया परिवारों, और श्रीलंका में भंडारनायके और राजपक्षे परिवारों का उदाहरण देते हुए कहा, ‘सच कहूं तो, इस तरह की वंशवादी राजनीति पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है।’
भारत ने वंशवादी मॉडल को इतनी पूरी तरह क्यों अपनाया?हालांकि, थरूर का मानना है कि यह वंशवादी राजनीति भारत के जीवंत लोकतंत्र के साथ खास तौर पर बेमेल लगती है। उन्होंने सवाल उठाया कि भारत ने वंशवादी मॉडल को इतनी पूरी तरह क्यों अपनाया है? इसका एक कारण यह हो सकता है कि एक परिवार एक ब्रांड के रूप में प्रभावी ढंग से काम कर सकता है। थरूर के अनुसार, यदि मतदाता किसी उम्मीदवार के पिता, चाची या भाई-बहन को स्वीकार करते हैं, तो वे शायद उम्मीदवार को भी स्वीकार कर लेंगे, जिससे विश्वसनीयता बनाने की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती।
'वंशवादी राजनीति लोकतंत्र के लिए एक खतरा'शशि थरूर ने इस बात पर फिर से जोर दिया कि वंशवादी राजनीति भारतीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर खतरा है। उन्होंने कहा, ‘जब राजनीतिक सत्ता का निर्धारण योग्यता, प्रतिबद्धता या ज़मीनी स्तर पर जुड़ाव के बजाय वंश से होता है, तो शासन की गुणवत्ता प्रभावित होती है।’ इसका मतलब है कि योग्य और सक्षम लोगों को अवसर नहीं मिल पाता, और शासन का स्तर गिर जाता है।
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