दीपोत्सव का अंतिम दिवस, कार्तिक शुक्ल द्वितीया, भाई दूज या यमद्वितीया के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि दिनांक 23 अक्टूबर 2025, दिन गुरुवार को रात्रि 9 बजकर 45 मिनट तक रहेगी, जिसके चलते भइया दूज, यम द्वितीया इसी दिन मनाया जाएगा।
दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव का यह समापन दिवस, भाई-बहन के स्नेह, आशीर्वाद और संबंधों की पवित्रता का प्रतीक है। इस पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता है, क्योंकि इसके पीछे यमराज और उनकी बहन यमुना की प्राचीन कथा जुड़ी हुई है। किंवदंती के अनुसार, यमराज ने अपनी बहन यमुना के स्नेह-निवेदन पर इसी दिन उसके घर पधारकर उसका स्नेह पूर्वक आतिथ्य स्वीकार किया था। प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना को वरदान दिया कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर स्नेह पूर्वक भोजन करेगा और यमुना में स्नान करेगा, उसे दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होगी। तभी से इस दिन भाई-बहन के मिलन और यमुना स्नान की परंपरा प्रारंभ हुई। भाई दूज के दिन बहनें स्नान के पश्चात रोली और अक्षत से अपने भाई के माथे पर तिलक करती हैं और उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं। तिलक के समय यह मंगल मंत्र बोला जाता है,
गंगा पूजे यमुना को, यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई की आयु बढ़े।
भाई अपनी बहन को उपहार या दक्षिणा देता है और प्रेमपूर्वक उसके बनाए भोजन को ग्रहण करता है। विवाहिता बहनें अपने भाइयों को ससुराल में आमंत्रित करती हैं, जबकि अविवाहिताएं पिता के घर ही भाइयों का स्वागत करती हैं। परंपरा है कि बहन के हाथ का भोजन करने से भाई की आयु बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। जिनके पास जन्म से बहन नहीं होती, वे मुंहबोली बहन द्वारा तिलक कराकर यह पर्व मना सकते हैं। इस दिन बहनें प्रार्थना करती हैं कि उनका भाई भी मार्कण्डेय, हनुमान, बलि, परशुराम, व्यास, कृपाचार्य, विभीषण और द्रोणाचार्य की तरह चिरंजीवी रहे। भाई दूज एक पारिवारिक उत्सव के साथ-साथ भाई-बहन के बीच प्रेम, जिम्मेदारी और संरक्षण की अनमोल भावना का उत्सव है, जहां स्नेह की डोर दीपों की तरह उजाला फैलाती है और पारिवारिक बंधनों को और दृढ़ बनाती है।
दीपावली के पांच दिवसीय उत्सव का यह समापन दिवस, भाई-बहन के स्नेह, आशीर्वाद और संबंधों की पवित्रता का प्रतीक है। इस पर्व को यम द्वितीया भी कहा जाता है, क्योंकि इसके पीछे यमराज और उनकी बहन यमुना की प्राचीन कथा जुड़ी हुई है। किंवदंती के अनुसार, यमराज ने अपनी बहन यमुना के स्नेह-निवेदन पर इसी दिन उसके घर पधारकर उसका स्नेह पूर्वक आतिथ्य स्वीकार किया था। प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना को वरदान दिया कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन के घर जाकर स्नेह पूर्वक भोजन करेगा और यमुना में स्नान करेगा, उसे दीर्घायु और मोक्ष की प्राप्ति होगी। तभी से इस दिन भाई-बहन के मिलन और यमुना स्नान की परंपरा प्रारंभ हुई। भाई दूज के दिन बहनें स्नान के पश्चात रोली और अक्षत से अपने भाई के माथे पर तिलक करती हैं और उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना करती हैं। तिलक के समय यह मंगल मंत्र बोला जाता है,
गंगा पूजे यमुना को, यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजे कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे, मेरे भाई की आयु बढ़े।
भाई अपनी बहन को उपहार या दक्षिणा देता है और प्रेमपूर्वक उसके बनाए भोजन को ग्रहण करता है। विवाहिता बहनें अपने भाइयों को ससुराल में आमंत्रित करती हैं, जबकि अविवाहिताएं पिता के घर ही भाइयों का स्वागत करती हैं। परंपरा है कि बहन के हाथ का भोजन करने से भाई की आयु बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। जिनके पास जन्म से बहन नहीं होती, वे मुंहबोली बहन द्वारा तिलक कराकर यह पर्व मना सकते हैं। इस दिन बहनें प्रार्थना करती हैं कि उनका भाई भी मार्कण्डेय, हनुमान, बलि, परशुराम, व्यास, कृपाचार्य, विभीषण और द्रोणाचार्य की तरह चिरंजीवी रहे। भाई दूज एक पारिवारिक उत्सव के साथ-साथ भाई-बहन के बीच प्रेम, जिम्मेदारी और संरक्षण की अनमोल भावना का उत्सव है, जहां स्नेह की डोर दीपों की तरह उजाला फैलाती है और पारिवारिक बंधनों को और दृढ़ बनाती है।
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