दीप सिंह, लखनऊ: कभी सूखे के लिए चर्चा में रहने वाला बुंदेलखंड पिछले कुछ साल से बाढ़ की विभिषिका से त्रस्त है। इस साल बुंदेलखंड में बाढ़ ने कुछ ज्यादा ही तबाही मचा दी है। अब सवाल ये उठ रहे हैं कि आखिर क्या है इस बाढ़ की वजह? क्या अब बारिश ज्यादा होने लगी है? क्या सिर्फ बारिश ही मुख्य वजह है? या बाढ़ की इस त्रासदी के पीछे वजहें और भी हैं?
यदि हम बारिश की बात करें तो पिछले पांच साल के आंकड़े गवाह हैं। सामान्य तौर पर 80% से अधिक बारिश होती है तो उसे सामान्य माना जाता है। बुंदेलखंड के सात जिलों को देखें तो पांच साल में एक-दो जिलों में किसी एक-दो साल ही इससे थोड़ा कम बारिश हुई है। हर साल ज्यादातर जिलों में सामान्य से ज्यादा ही बारिश हो रही है। इस साल तो कई जिलों में 200% से ऊपर भी बारिश हो चुकी है।
लखनऊ मौसम विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. एके सिंह कहते हैं कि पिछले कई साल से यह देखा गया है कि जब भी मॉनसून एक्टिव होता है तो उस समय मध्य भारत में आकर ठहर जाता है। यूपी के बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश के कुछ जिले इसी क्षेत्र में आते हैं। डॉ. सिंह कहते हैं कि वहां की नदियां पथरीले रास्तों से होकर आती हैं। ऐसे में नदियों के अंदर पानी को सोखने की क्षमता भी कम होती है।
गायब हुए तालाब
चित्रकूट के ही सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल जी कहते बताते हैं कि मैं 1970 के दशक में ग्राम प्रधान था। उस समय हमारे गांव में दो बड़े तालाब थे। एक तो 2.5 हेक्टेअर का था। उसमें से दो हेक्टेअर गायब हो चुका। पुराने तालाब सब गायब हो गए। पिछले 20 साल में जो तालाब बनाए उनके सौंदर्यीकरण के नाम पर कई बार पैसा खर्च किया गया लेकिन उनमें पानी जाने और निकलने का रास्ता है या नहीं, इस पर ध्यान नहीं दिया। अवैध खनन भी खूब हुआ। उसमें से पूरी बालू निकाल ली।
पेड़, पहाड़ नदियां से छेड़छाड़
बुंदेलखंड में जल संरक्षण के लिए उल्लेखनीय काम करने वाले पर्यावरणविद पद्मश्री उमाशंकर पांडेय कहते हैं कि पेड़, पहाड़ और नदियों को हमने नष्ट किया है। इससे जलवायु परिवर्तन हुआ और बारिश का ट्रेंड बदल रहा है। हमारा परम्परागत जल प्रबंधन काफी अच्छा था। उस तरफ ही हमें लौटना होगा। खनन पर कुछ साल तक पूरी तरह रोक लगाने की जरूरत है।
महोबा के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता तारा पाटकर कहते हैं कि अवैध खनन ने नदियों का रुख मोड़ दिया। खेतों और गांवों की तरफ नदियों का रुख हो गया। बुंदेलखंड में कई छोटे-छोटे बांध बनाए गए हैं। वे इतना पानी रोकने में सक्षम नहीं हैं। जैसे ही बारिश ज्यादा होती है तो वहां से पानी छोड़ दिया जाता है। नदियों के कैचमेंट एरिया में निर्माण हो रहे हैं।
बुंदेलखंड की नदियां
यमुना, बेतवा, केन, बागेन, रंज, चंद्रावल, मंदाकिनी, गुंता, वाणगंगा, बरदहा, ओहन, उर्मिल, धसान, पहुज, नारायणी, सौर, बिरमा।
यहां ज्यादा बाढ़ का कहर
यूं तो बुंदेलखंड के सभी जिले बाढ़ की चपेट में हैं लेकिन कुछ इलाके ऐसे हैं जहां जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है। ये इलाके हैं बांदा में नरैनी, तिंदवारी, बवेरू, कमासिन, चित्रकूट में चित्रकूट शहर और राजापुर, झांसी में बबीना और मऊरानीपुर, ललितपुर में महरौनी, तालबेहट, जालौन में काल्पी क्षेत्र और हमीरपुर के कई शहर एवं ग्रामीण।
जल प्रबंधन का अभाव
बुंदेलखंड में तो ज्यादा बारिश हो ही रही है। यहां कई नदियां ब्रज क्षेत्र और मध्य प्रदेश से होकर आती हैं। उन इलाकों में मॉनसून सीजन की शुरुआत से खूब बारिश हो रही है। यह भी इस साल बाढ़ की मुख्य वजह है। वहीं जानकार बाढ़ की दूसरी वजहें भी बताते हैं। उनका मानना है कि हमने जल प्रबंधन ठीक से नहीं किया। पहले जो परम्परागत सिस्टम था, उसको भी खत्म कर दिया।
यदि हम बारिश की बात करें तो पिछले पांच साल के आंकड़े गवाह हैं। सामान्य तौर पर 80% से अधिक बारिश होती है तो उसे सामान्य माना जाता है। बुंदेलखंड के सात जिलों को देखें तो पांच साल में एक-दो जिलों में किसी एक-दो साल ही इससे थोड़ा कम बारिश हुई है। हर साल ज्यादातर जिलों में सामान्य से ज्यादा ही बारिश हो रही है। इस साल तो कई जिलों में 200% से ऊपर भी बारिश हो चुकी है।
लखनऊ मौसम विज्ञान केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. एके सिंह कहते हैं कि पिछले कई साल से यह देखा गया है कि जब भी मॉनसून एक्टिव होता है तो उस समय मध्य भारत में आकर ठहर जाता है। यूपी के बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश के कुछ जिले इसी क्षेत्र में आते हैं। डॉ. सिंह कहते हैं कि वहां की नदियां पथरीले रास्तों से होकर आती हैं। ऐसे में नदियों के अंदर पानी को सोखने की क्षमता भी कम होती है।
गायब हुए तालाब
चित्रकूट के ही सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल जी कहते बताते हैं कि मैं 1970 के दशक में ग्राम प्रधान था। उस समय हमारे गांव में दो बड़े तालाब थे। एक तो 2.5 हेक्टेअर का था। उसमें से दो हेक्टेअर गायब हो चुका। पुराने तालाब सब गायब हो गए। पिछले 20 साल में जो तालाब बनाए उनके सौंदर्यीकरण के नाम पर कई बार पैसा खर्च किया गया लेकिन उनमें पानी जाने और निकलने का रास्ता है या नहीं, इस पर ध्यान नहीं दिया। अवैध खनन भी खूब हुआ। उसमें से पूरी बालू निकाल ली।
पेड़, पहाड़ नदियां से छेड़छाड़
बुंदेलखंड में जल संरक्षण के लिए उल्लेखनीय काम करने वाले पर्यावरणविद पद्मश्री उमाशंकर पांडेय कहते हैं कि पेड़, पहाड़ और नदियों को हमने नष्ट किया है। इससे जलवायु परिवर्तन हुआ और बारिश का ट्रेंड बदल रहा है। हमारा परम्परागत जल प्रबंधन काफी अच्छा था। उस तरफ ही हमें लौटना होगा। खनन पर कुछ साल तक पूरी तरह रोक लगाने की जरूरत है।
महोबा के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता तारा पाटकर कहते हैं कि अवैध खनन ने नदियों का रुख मोड़ दिया। खेतों और गांवों की तरफ नदियों का रुख हो गया। बुंदेलखंड में कई छोटे-छोटे बांध बनाए गए हैं। वे इतना पानी रोकने में सक्षम नहीं हैं। जैसे ही बारिश ज्यादा होती है तो वहां से पानी छोड़ दिया जाता है। नदियों के कैचमेंट एरिया में निर्माण हो रहे हैं।
बुंदेलखंड की नदियां
यमुना, बेतवा, केन, बागेन, रंज, चंद्रावल, मंदाकिनी, गुंता, वाणगंगा, बरदहा, ओहन, उर्मिल, धसान, पहुज, नारायणी, सौर, बिरमा।
यहां ज्यादा बाढ़ का कहर
यूं तो बुंदेलखंड के सभी जिले बाढ़ की चपेट में हैं लेकिन कुछ इलाके ऐसे हैं जहां जनजीवन पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो गया है। ये इलाके हैं बांदा में नरैनी, तिंदवारी, बवेरू, कमासिन, चित्रकूट में चित्रकूट शहर और राजापुर, झांसी में बबीना और मऊरानीपुर, ललितपुर में महरौनी, तालबेहट, जालौन में काल्पी क्षेत्र और हमीरपुर के कई शहर एवं ग्रामीण।
जल प्रबंधन का अभाव
बुंदेलखंड में तो ज्यादा बारिश हो ही रही है। यहां कई नदियां ब्रज क्षेत्र और मध्य प्रदेश से होकर आती हैं। उन इलाकों में मॉनसून सीजन की शुरुआत से खूब बारिश हो रही है। यह भी इस साल बाढ़ की मुख्य वजह है। वहीं जानकार बाढ़ की दूसरी वजहें भी बताते हैं। उनका मानना है कि हमने जल प्रबंधन ठीक से नहीं किया। पहले जो परम्परागत सिस्टम था, उसको भी खत्म कर दिया।
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