नई दिल्ली। दिल्ली में स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेनएयू) में अब ‘कुलपति’ नहीं बल्कि ‘कुलगुरु’ होंगे। जेएनयू की मौजूदा वीसी शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने इसका सुझाव दिया था जिसे वर्किंग काउंसिल की बैठक में मंजूरी दे दी गई। इस फैसले के बाद अब जेएनयू की डिग्री या अन्य दस्तावेजों में कुलपति की जगह कुलगुरु लिखा होगा। इस फैसले के पीछे दो मुख्य कारण हैं। पहला यह कि इससे लैंगिक समानता आएगी और दूसरा भारतीय शिक्षा की प्राचीन परम्परा से जुड़ाव होगा। इससे पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश के विश्वविद्यालयों में भी कुलपति शब्द की जगह कुलगुरु के इस्तेमाल का प्रस्ताव सामने आ चुका है।
जेएनयू वीसी शांतिश्री धुलीपुडी पंडित (फाइल फोटो)दरअसल कुलपति शब्द कहीं ना कहीं पुरुष प्रधान है, वहीं कुलगुरु ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल पुरुष और महिला दोनों के लिए ही समान रूप से किया जा सकता है। जेएूनयू की वर्तमान कुलपति प्रोफेसर शांतिश्री धुलीपुडी पंडित ने इसी के चलते कुलपति शब्द को हटाने का प्रस्ताव दिया। प्रोफेसर शांतिश्री का कहना है कि समावेशी सोच को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह बदलाव किया गया है। इससे किसी को भी लिंग आधारित असमानता महसूस नहीं होगी। प्रोफेसर शांतिश्री के मुताबिक भारत में शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं होती। शिक्षा के जरिए सोच, व्यवहार और संस्कृति को भी गढ़ा जाता है। इसे देखते हुए कुलगुरु एक ऐसा शब्द है जो भारतीय शिक्षा परम्परा के अधिक नजदीक है।
आपको बता दें कि राजस्थान विधानसभा में मार्च 2025 में विधेयक पारित किया गया था, जिसमें प्रदेश के विश्वविद्यालयों में कुलपति की जगह कुलगुरु शब्द का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया था। वहीं पिछले साल मध्य प्रदेश सरकार की कैबिनेट बैठक में भी कुलपति की जगह कुलगुरु शब्द के इस्तेमाल का फैसला लिया गया था। बता दें कि जेएनयू भारत के प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में आता है। अपने उत्कृष्ट शिक्षाविदों, अनुसंधान और सक्रिय छात्र समुदाय के लिए भी इसकी पहचान है।
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