अगली ख़बर
Newszop

घरेलू हिंसा मामले में लापरवाही पर हाईकोर्ट तल्ख

Send Push

–वाराणसी सम्बंधित मजिस्ट्रेट एवं पुनरीक्षण न्यायालय से मांगा स्पष्टीकरण

Prayagraj, 13 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने घरेलू हिंसा मामले में न्यायिक लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए वाराणसी के सम्बंधित मजिस्ट्रेट एवं पुनरीक्षण न्यायालय से स्पष्टीकरण मांगा है.

सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा यह चिंतनीय है कि सर्वोच्च न्यायालय और इस न्यायालय के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद न तो ट्रायल कोर्ट और न ही पुनरीक्षण न्यायालय ने पति को परिसंपत्तियों और देनदारियों का हलफनामा प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. इस तरह की निष्क्रियता सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के बाध्यकारी दृष्टांतों की अवहेलना और अवमानना के समान है, जो संबंधित न्यायालयों द्वारा उदासीनता की स्थिति को दर्शाती है. इसके अलावा इस न्यायालय द्वारा पति के वेतन से भरण-पोषण की वसूली अनिवार्य करने वाले निर्देश का भी अनुपालन नहीं किया गया है. ऐसा आचरण एक सिस्टम की विफलता को दर्शाता है और न्यायिक प्रणाली में वादकारियों के विश्वास को क्षीण करता है.

इस न्यायालय ने कई अवसरों पर परिवार न्यायालयों को संवेदनशीलता, जागरूकता और ज़िम्मेदारी के साथ कार्य करने के निर्देश दिए हैं, विशेष रूप से भरण-पोषण और घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों में. ट्रायल कोर्ट न्यायाधीशों द्वारा इनका अनुपालन नहीं किए जा रहा है, जो दुर्भाग्यपूर्ण है.

ऐसी परिस्थितियों में न्यायिक मजिस्ट्रेट कक्ष संख्या तीन वाराणसी स्पष्टीकरण प्रस्तुत करें, जिसमें उन कानूनी बाधाओं का उल्लेख हो जिन्होंने इस मामले में संवैधानिक न्यायालयों के निर्देशों का अनुपालन करने से रोका. इसी तरह पुनरीक्षण न्यायालय को भी स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जाता है, जिसमें उस रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री को बताया जाए जिसके आधार पर भरण-पोषण की राशि 15 हजार से घटाकर 10 हजार रुपये प्रतिमाह की गई थी. कोर्ट ने रजिस्ट्रार अनुपालन को निर्देश दिया कि इस आदेश की एक प्रति संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट और पुनरीक्षण न्यायालय को भेजें. यह भी कहा कि स्पष्टीकरण इस न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के माध्यम से अगली सुनवाई को या उससे पहले प्रस्तुत किए जाएंगे. साथ ही टालमटोल वाला जवाब प्रशासनिक कार्रवाई को आमंत्रित कर सकता है.

यह आदेश न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर ने रोशनी वर्मा की याचिका पर उनके अधिवक्ता को सुनकर दिया है. मामले के तथ्यों के अनुसार याची छह नवंबर 2018 को न्यायिक मजिस्ट्रेट वाराणसी की अदालत में घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत परिवाद दाखिल किया. छह महीने बाद पति को नोटिस तामील किया गया. वह उपस्थित होने में विफल रहा. परिणामस्वरूप, ट्रायल कोर्ट ने एकपक्षीय कार्यवाही आगे बढ़ाई. लगभग दो साल और दो महीने बाद वह उपस्थित हुआ. इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने याची पत्नी को 15 हजार रुपये प्रतिमाह का अंतरिम भरण-पोषण प्रदान किया. पति ने इस आदेश को पुनरीक्षण न्यायालय के समक्ष चुनौती दी. पुनरीक्षण न्यायालय ने भरण-पोषण की राशि घटाकर 10 हजार रुपये प्रतिमाह कर दी.

अंतरिम भरण-पोषण में कमी किए जाने पर पत्नी ने हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दाखिल की. हाईकोर्ट ने पति के रेलवे सेक्शन इंजीनियर के पद पर कार्यरत होने की स्थिति और एक लाख 10 हजार रुपये प्रतिमाह वेतन आहरित करने पर विचार के बाद अंतरिम भरण-पोषण को वापस 15 हजार रुपये प्रतिमाह बहाल कर दिया.

याची के अधिवक्ता ने कहा कि हैं कि इस मामले की कार्यवाही छह नवम्बर 2018 से लम्बित होने के बावजूद याची को अब तक भरण-पोषण का एक पैसा भी नहीं मिला है और वह किसी भी वित्तीय सहायता के बिना निर्धनता का जीवन जी रही है. उन्होंने यह भी कहा कि याची का पति Indian रेलवे में इंजीनियर के रूप में कार्यरत है और पर्याप्त वेतन अर्जित कर रहा है. इसके बावजूद उसने कोई भरण-पोषण नहीं दिया, जिसके परिणामस्वरूप चार लाख 55 हजार रुपये बकाया हो गया है.

—————

(Udaipur Kiran) / रामानंद पांडे

न्यूजपॉईंट पसंद? अब ऐप डाउनलोड करें